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जानें हरतालिका तीज कब है, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि शिव गौरी वंदन हरितालिका तीज की व्रत कथा


हरतालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं।इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। दरअसल यह व्रत निर्जल रखा जाता है। इसी कारण यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज व्रत रखती हैं। उनके द्वारा यह व्रत सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखा है। हरतालिका तीज व्रत के लिए मायके से महिलाओं के लिए श्रृंगार का समान, मिठाई, फल और कपड़े भेजे जाते हैं।



अखंड सौभाग्य का यह पर्व इस दिन महिलाएं पति के लिए उपवास रखकर शिव-गौरी का पूजन-वंदन कर झूला झूलती है,सुरीले स्वर में सावन के गीत-मल्हार गाती हैं। पूजा-अर्चना के साथ उल्लास-उमंग का यह त्योहार एक पारंपरिक उत्सव के रूप में जीवन में नए रंग भरता है, दांपत्य में प्रगाढ़ता लाता है, साथ ही परिवार और समाज को स्नेह सूत्र में बांधता है।


आज के समय में भी इसकी महत्वता बनी हुई है। सच तो यह है कि हमारे धर्म में हर त्योहार, व्रत जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान से जुड़ा हुआ है। परिवार या दांपत्य जीवन में किसी कारणवश मन-मुटाव हो गया हो, कटुता आ गई हो, तो उसे दूर करने के लिए उनमें सकारात्मक भावना पैदा करने के लिए ही हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे व्रत-त्योहारों का विधान किया है।


पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रति वर्ष रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 9 सितंबर गुरुवार को रखा जाएगा। आइए जातने हैं हरतालिका तीज व्रत का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा के बारे में।



हरतालिका तीज मुहूर्त👇


9 सितम्बर दिन गुरुवार को


प्रातःकाल पूजा का मुहूर्त - 9 सितंबर गुरुवार को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट


प्रदोष काल पूजा मुहूर्त - 9 सितंबर गुरुवार को शाम को 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक


हरतालिका तीज पूजा विधि


सुबह जल्दी उठें और स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

अब शुद्ध मिट्टी से भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं।

एक चौकी पर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल की आकृति बनाएं।

एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, अक्षत, सिक्के डालें।

उस कलश की स्थापना अष्टदल कमल की आकृति पर करें।

कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाकर नारियल रखें।

आचार्य वेद शुक्ला 
वैदिक ज्योतिष केंद्र चित्रकूट धाम 
Mob : 9415061756


चौकी पर पान के पत्तों पर चावल रखें।


माता पार्वती, गणेश जी, और भगवान शिव को स्नानादि कराएं।

उसके उपरांत भगवान गणेश जी को एवं शंकर जी को जनेऊ और माता पार्वती जो को कलावा या वस्त्र अर्पित करें।


वस्त्रोपरांत तिलक चन्दन लगाएं।


उसके बाद भगवान शिव को उनके प्रिय बेलपत्र धतूरा भांग शमी के पत्ते आदि अर्पित करें।


माता पार्वती को फूल माला चढ़ाएं गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें।


भगवान गणेश, माता पार्वती को पीले चावल और शिव जी को सफेद चावल अर्पित करें।


पार्वती जी को शृंगार का सामान भी अवश्य अर्पित करें।


उसके बाद धूप एवं दीपक दिखाएं


अब मिष्ठान्न आदि और फल का नैवैद्य अर्पित करें।

यथोचित दक्षिणा इत्यादि अर्पित कर प्रार्थना कर लें।


हरितालिका तीज की कथा सुनें।


शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इस बात से पार्वती जी के माता-पिता काफी चिंतित थे। तभी एक दिन देवर्षि नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थी अतः उन्होंने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। पार्वतीजी ने अपनी एक सखी को अपनी इच्छा बताई कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी। सखी की सलाह पर पार्वतीजी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।


पूरी पूजा विधिवत् कर लेने के बाद आरती करें

आरती के बाद प्रार्थना कर आरती ग्रहण कर लें


हरतालिका का शाब्दिक अर्थ की बात करें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका, हरत का अर्थ होता है अपहरण और आलिका अर्थात् सहेली, इस संबंध में एक पौराणिक कथा मिलती है जिसके अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थी। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें। अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

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