श्राद्ध भोजन करते समय मौन रहना चाहिए, मांगने या मना करने का संकेत हाथ से ही करना चाहिए। भोजन करते समय ब्राह्मण से भोजन की प्रशंसा नही पूछना चाहिए कि कैसा बना है। न ही भोजन की प्रशंसा ब्राह्मण को करनी चाहिए।
श्राद्ध में प्रशस्त आसन
रेशमी,नेपाली कम्बल,ऊन, काष्ठ, तृण, पर्ण, कुश(डाब) का आसन श्रेष्ठ है। काष्ठ आसनों में शमी,कदम्ब, जामुन,आम वृक्ष के श्रेष्ठ है। इनमे भी लोहे की कील नही होनी चाहिए।
श्राद्ध करने के अधिकारी
श्राद्धकल्पलता के अनुसार श्राद्ध के अधिकारी पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र,दौहित्र, पत्नी,भाई,भतीजा, पिता,माता,पुत्र
वधू, बहन,भानजा, सपिण्ड अधिकारी बताये है।
श्राद्ध में प्रशस्त अन्न- फलादि
ब्रह्माजी ने पशु सृष्टि में सबसे सबसे पहले गौओं को रचा है अतः श्राद्ध में उन्ही का दूध,दही,घृत प्रयोग में लेना चाहिए।
जौ,धान, तिल, गेहूँ, मूंग,साँवाँ, सरसो तेल,तिन्नी चावल,मटर से पितरों को तृप्त करना चाहिए।
आम,बेल,अनार,बिजौरा, पुराना आँवला, खीर,नारियल,खजूर,अंगूर, चिरोंजी,बेर,जंगली बेर,इन्द्र जौ का श्राद्ध में यत्नपूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
श्राद्ध में चांदी की महिमा
पितरों के निमित्त यदि चांदी से बने हुए या मढ़े हुए पात्रों द्वारा श्रद्धापूर्वक जलमात्र भी प्रदान कर दिया जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है।इसी प्रकार पितरों के लिए अर्घ्य ओर भोजन के पात्र भी चांदी के प्रशस्त माने गए है चूँकि चांदी शिवजी के नेत्रों से उद्भूत हुई है इसलिए यह पितरों को परम प्रिय है।
महालय श्राद्ध (पितृ पक्ष)करने का समय
महालय श्राद्ध मध्याह्न से अपराह्न के मध्य प्रातः11.36 से 3.36 दोपहर तक किया जा सकता है। इसमे दिन का आठवां मुहूर्त कुतप वेला 11.36 से 12.24 तक श्रेष्ठ है। श्राद्ध के लिए यह काल मुख्यरूप से प्रशस्त माना गया है। सांयाह्न एवं रात्रि समय श्राद्ध निषेध है क्योंकि यह असुर काल है इस समय किया गया श्राद्ध पितरो को प्राप्त न होकर असुरो को प्राप्त होता है। यही शास्त्रोक्त नियम है।