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बुंदेलखंड में कोणार्क व पाकिस्तान के बाद कालपी में तीसरा सूर्य मंदिर: श्री कृष्ण के पौत्र को यहीं मिली थी शाप से मुक्ति

 

श्री कृष्ण के पौत्र साम्ब ने यमुना नदी के किनारे की थी सूर्य उपासना, साम्ब को दुर्वासा ऋषि ने कुष्ट रोगी होने का दिया था शाप, कुष्ठ रोगियों के लिए वरदान माना जाता कालपी का सूर्य मंदिर.

पंकज पाराशर छतरपुर

चित्रकूट : भगवान भाष्कर यानी सूर्य देव का एक मंदिर ओडिशा के कोणार्क में है तो दूसरा पाकिस्तान के मुल्तान में और तीसरा सूर्य मंदिर कालपी में है। बुंदेलखंड क्षेत्र की तपोभूमि कालपी उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में पड़ता है, यहां के मदरा लालपुर गांव में यमुना नदी के किनारे स्थित सैकड़ों साल पुराने सूर्य मंदिर की हूबहू बनावट कोणार्क के सूर्य मंदिर जैसी है। मान्यता है कि श्री कृष्ण के पौत्र साम्ब ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर के पास ही सूरज कुंड भी है। महान ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर ने यहीं पर विश्व प्रसिद्ध सूर्य सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। महीन के हर रविवार को यहां बड़ी संख्या में क्षय रोगी स्नान करते हैं और भगवान भास्कर को को जल व दूध अर्पित करते हैं। मान्यता है कि रविवार को सूर्य उपासना से यहां आये कुष्ट रोगियों का कल्याण होता है।

शास्त्रों के मुताबिक, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने द्वारकापुरी में आए रुद्र अवतार ऋषि दुर्वासा के रूप व दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगे। अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को कुष्ठ रोगी होने का शाप दिया। भविष्य पुराण के अनुसार, इस श्राप से मुक्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण के पौत्र साम्ब ने यमुना नदी के किनारे सूर्य उपासना की थी। कन्नौज के इतिहास पर आधारित पुस्तक 'कान्यकुब्ज महात्म्य' में भी लिखा है कि ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण साम्ब कुष्ठ रोगी हो गए थे। देवताओं की सलाह पर कन्नौज राज्य के मकरंज नगर में स्थित सूर्य कुंड में स्नान कर साम्ब को शाप से मुक्ति मिली थी। उनका शरीर पूरी तरह निरोग हो गया था। शाप से मुक्ति के बाद राजा साम्ब ने यमुना नदी के तट पर कालप्रिय नाथ सूर्यदेव का मंदिर बनवाया था। इसके बाद नगर का नाम कालप्रिय पड़ा, जो बाद में कालपी के नाम से जाना जाने लगा। उन दिनों कन्नौज राज्य की दक्षिणी सीमा कालपी तक फैली थी।

नागर शैली में बना है सूर्य मंदिर

कालपी का यह सूर्य मंदिर चूने और लाल पत्थर से बना है। इसके बनावट की शैली नागर शैली है। मंदिर के नाम पर अब यहां सिर्फ कुछ सूर्य मठिया ही बची हैं। पहले यहां भगवान सूर्य की प्रतिमा थी। बुंदेलखंड के इतिहासविद डॉ. चित्रगुप्त कहते हैं कि कालांतर में यमुना नदी में आई बाढ़ के चलते प्रतिमा बह गई हों या फिर संभव हो कि मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिर को क्षति पहुंचाई गई हो।

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