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वीरभूमि बुंदेलखंड मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मन्दिर:पृथ्वीराज व आल्हा उदल के युद्ध का साक्षी, यहां देवी के दिखते तीन रूप

 

"आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वीराज एवं बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा ऊदल के युद्ध का गवाह बैरागढ़ मन्दिर."

पंकज पाराशर छतरपुर

वीर भूमि बुंदेलखंड में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हम उस ऐतिहासिक मन्दिर की ओर ले चलते हैं जो आखिरी हिन्दूराजा पृथ्वीराज और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा ऊदल के युद्ध का गवाह बना हुआ। यह मन्दिर उत्तर प्रदेश में जिला जालौन के बैरागढ ग्राम में स्थित हो जो शक्ति पीठ शारदा मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां जालौन ही नहीं अपितु पूरे भारत वर्ष से लोग दर्शन करने आते है l 

उरई मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर है मन्दिर

यह जालौन के जिला मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलो मीटर दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में बना हुआ है। यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं। मां शारदा की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है। मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मन्दिर की स्थापना चन्देल कालीन राजा टोडलमल द्वारा ग्यारहवी सदी में कराई गयी थी। जबकि किवदंतियों के अनुसार यह मन्दिर आदिकाल में निर्मित कराया गया था और मां शारदा की मूर्ति मन्दिर के पीछे बने एक कुंड से निकली थी। प्राचीन किवदंतियों के अनुसार कुंड से मां शारदा प्रकट हुयी थी इसीलिये इस स्थान को सिद्ध पीठ कहा जाता है। वर्तमान में यह मन्दिर खेत में स्थित है। 

दिन में कई रूपों में दिखाई देती है मूर्ति

मां शारदा शक्ति पीठ के बारे में दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार मूर्ति कई रूपों में दिखाई देती है। सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है। जिनके दर्शनों के लिये पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालू दर्शन करने आते है।

पृथ्वीराज और आल्हा ऊदल के युद्ध की गवाह है माँ शारदा

मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है। पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवी सदी के बुन्देलखंड के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढाई की थी। उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी। आल्हा उदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे। बैरागढ़ के युद्ध मे आल्हा उदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था। बताया गया कि आल्हा और उदल मां शारदा के उपासक थे। जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पायेगा। उदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी। उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों में सुरंग गाढ़ दी और युद्ध से बैराग ले लिया जो आज भी मन्दिर के मठ के ऊपर गढ़ी है। यह सुरंग 30 फिट से भी ऊंची है और यह सुरंग जमीन में इतनी ही अधिक गढ़ी है। मन्दिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सुरंग इसकी प्राचीनता दर्शाता है। जब आल्हा ने युद्ध से बैराग लिया अभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया।

पूरे देश में दो ही स्थान पर मां शारदा के मन्दिर

देश में यह मन्दिर दो ही स्थान पर है। जिसमें एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में है। मन्दिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर दराज से श्रद्धालू आते है। मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा उदाल आते थे। मन्दिर के पीछे एक कुंड है। इस कुंड में नहाने से सभी प्रकार के चरम रोग ख़त्म हो जाते है।

बैराग लेने के बाद पडा बैरागढ नाम

मन्दिर के पुजारी श्याम जी महाराज के अनुसार यहां पर आल्हा उदल ने पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध हुआ था। जिसमें उदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी। उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप माँ शारदा के चरणों मे सांग गाढ दी और युद्ध से बैराग ले लिया। आल्हा के युद्ध से बैराग लेने के बाद इस स्थान का नाम बैरागढ पड गया।

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