प्रसिद्ध शक्तिपीठ खत्री पहाड़ गिरवा का पौराणिक एवं ऐतिहासिक महात्म्य अद्भुत है। पौराणिक कथानक के अनुसार सतयुग में जब सती के पिता प्रजापति ने यज्ञ के आयोजन में शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया और सती हठथर्मी पूर्वक वहां पहुंच गई तो पिता द्वारा शंकर जी के प्रति अपमानजनक व्यवहार करने पर सती आह्वान पूर्वक अग्नि में जल गई इस घटना से शंकर जी क्रोध में पहुंचे और सती के शव को लेकर चले गए । मार्ग में सती के अंग जहां-जहां गिरे वह स्थान देव स्थल बने । सती के पैर की एक अंगुली इसी खत्री पहाड़ के शिखर पर गिरी और यहां अंगुल्या देविका स्थान बना कालांतर में मध्य प्रदेश के पन्ना स्टेट के राजा छत्रसाल ने इसी स्थान पर मढी का निर्माण कराया बाद में पंजाब के राजा खत्री ने जीर्णोद्धार कराया । उस समय पहाड़ के ऊपर ही नवरात्रों की अष्टमी को मेला लगता था और श्रद्धालु देवी दर्शनार्थ आते थे । एक अन्य पौराणिक कथानक द्वापर युग का है जिसके अनुसार मथुरा के दुष्ट राजा कंस का वध करने के लिए विष्णु अवतार श्री कृष्ण कंस की बहन देवकी की कोख सै आठवीं संतान के रूप में पैदा हुए तब देवकी और उनके पति वसुदेव को कंस ने भयवश कारागार में डाल रखा था । कंस से नवजात श्री कृष्ण की जीवन रक्षा के लिए वसुदेव उन्हें रातों-रात गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के यहां छोड़ आए तथा उनकी नवजात कन्या को उठा लाए इसी कन्या को कृष्ण समझकर मारने के लिए जब कंस चट्टान में पछाडने लगा तो वह उसके हाथ से से छिटककर यह आकाशवाणी करती हुई कि तेरा वध करने वाला तो गोकुल में है और आकाश मार्ग से मिर्जापुर विंध्य पर्वत जाते समय सर्वप्रथम इसी खत्री पहाड़ में रुकीं, लेकिन पर्वत ने देवी मां का भार वहन करने में असमर्थता जताई तो वह कोढी हो जाने का श्राप देकर मिर्जापुर चली गई तभी से इस पहाड़ के पत्थर सफेद हो गए और इसका नाम खत्री पहाड़ पड़ गया खत्री पहाड़ के नीचे बने मंदिर का भी एक अद्भुत इतिहास है सन 1974 में 17 अक्टूबर को ग्राम गिरवा में एक स्थान पर शतचंडी यज्ञ का आयोजन हुआ तो उसमें कन्या पूजन के लिए गांव के बद्री प्रसाद द्विवेदी की 7 वर्षीय नातिन ।पुत्री की पुत्री । शांता को पूजन में बैठाया गया तभी शांता देवी मां के प्रभाव में आ गई और देवी दर्शन की इच्छा व्यक्त की तो उसे खत्री पहाड़ के ऊपर अंगुल्या देवी की मढी मैं ले जाया गया यहां पर शांता ने पहाड़ के नीचे भी देवी मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा व्यक्त की तब ग्राम गिरवा के लोगों की अगुवाई में क्षेत्रवासियों के सहयोग से पर्वत के नीचे वर्तमान भव्य मंदिर का निर्माण हुआ और कमेटी का गठन हुआ तभी से हर नवरात्रि के पूरे दिनों यहां मेला लगने लगा और केवल अष्टमी के दिन पर्वत के ऊपर मढी में देवी दर्शन की पुरानी मान्यता बनी रही जबकि पर्वत के नीचे निर्मित मंदिर के पट अष्टमी को बंद रहने व अन्य दिनों देवी दर्शन की मान्यता चली आ रही है इस तीर्थ स्थली का यह भी महात्म्य है कि यहां समर्पित निर्मल भाव से पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं सिद्धिदात्री विंध्यवासिनी देवी पूर्ण करती हैं इसके प्रमाण श्रद्धालु ही हैंजो अपनी मनोकामनाएं पूरी होने पर पुनः दर्शनार्थ आकर संकल्पित चढौना भी चढ़ाते हैं।
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